रघुवीर सहाय |
जीवन-परिचय
रघुवीर सहाय दूसरा सप्तक तथा बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध के एक महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उनका जन्म 9 दिसंबर, 1929 को लखनऊ में हुआ। उनके पिता हरदेव सहाय साहित्य के अध्यापक थे। सन् 1951 में कवि ने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण की। परंतु उनका रचना कार्य सन् 1946 से ही आरंभ हो चुका था। वे आरंभ से ही पत्रकारिता से जुड़ गए। 1949 में उन्होंने 'दैनिक नवजीवन' को अपनी सेवाएँ देनी आरंभ कर दीं।
सन् 1951 तक वे इस दैनिक समाचार पत्र के संपादक तथा सांस्कृतिक संवाददाता के रूप में कार्य करते रहे। परंतु इसी वर्ष वे दिल्ली चले गए तथा 'प्रतीक' पत्रिका के सहायक संपादक बन गए। 1953 से 1957 तक वे आकाशवाणी में काम करते रहे। बाद में वे 'कल्पना' पत्रिका के संपादक मंडल के सदस्य बन गए। परंतु सन् 1961 में वे पुनः आकाशवाणी को अपनी सेवाएँ देने लगे। बाद में 1967 में वे 'दिनमान' साप्ताहिक पत्रिका से जुड़ गए। 1982 तक वे इसके प्रधान संपादक रहे, परंतु बाद में वे स्वतंत्र लेखन करने लगे। 30 दिसंबर, 1990 को उनका निधन हो गया।
शिक्षा
रघुवीर सहाय ने अपनी शिक्षा 'प्रीपरेट्री स्कूल' लखनऊ से प्रथम स्थान पर रहकर आरंभ की। चौथी कक्षा में "एंग्लो बंगाली इंटर स्कूल" में दाखिला लिया, इसी स्कूल से में पिताजी अध्यापक थे। इस स्कूल से संबद्ध अपने पिता की स्मृतियों में से कुछ पलों को कलमबद्ध करते हुए सहाय जी लिखते रहे।सहाय जी ने सन् 1944 में मैट्रिक की परीक्षा पास की तथा सन् 1946 में इंटर पास किया। 1948 में लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य, राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र विषयों में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इन्होंने प्रचुर मात्रा में गद्य और पद्य लिखें हैं। परंतु इनकी मूल विधा पद्य ही रही है।
रघुवीर सहाय दूसरा सप्तक कवियों में से एक है। दूसरा सप्तक में भवानी प्रसाद मिश्र, शकुन्त माथुर, हरिनारायण व्यास, शमशेर बहादुर सिंह, नरेश मेहता, रघुवीर सहाय एवं धर्मवीर भारती की रचनाएँ संकलित हैं। वे अपनी पढ़ाई के बारे में स्वयं सहाय जी के विचार इस प्रकार थे- 'पढ़ने-लिखने में साधारण प्रतिभा दिखला सका फ़र्स्ट क्लास केवल एक बार आठवें दर्जे में आया, और थर्ड क्लास केवल एक बारबी.ए. में। साथ ही हिंदी साहित्य सम्मेलन की परीक्षा 'विशारद' पास की। वहीं से 1951 में इन्होंने अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. किया।सहाय जी ने साहित्य सृजन 1946 से प्रारम्भ किया। अंग्रेज़ी भाषा में शिक्षा प्राप्त करने पर भी उन्होंने अपना रचना संसार हिंदी भाषा में रचा। पत्रकार दयानंद पांडेय लिखते हैं- 'वह अंग्रेजी में एम.ए. थे, लेकिन रोटी हिंदी की खाते थे। हिंदी के वह प्रखर प्रवक्ता थे। आजीवन हिंदी के लिए लड़ाई लड़ते रहे।
लेखनकार्य
लेखन के आरंभिक वर्षों से अंतिम वर्षों तक वे निरंतर रचना के अनेक मोर्चों पर सक्रिय रहे। सहाय जी की पहली उपलब्ध कविता सन् 1946 में लिखी गई ‘अंत का प्रारंभ', जब वे 17 वर्ष के थे। साहित्य और पत्रकारिता की शुरुआत उन्होंने लखनऊ में की, जहाँ उनका जन्मस्थान है। 1946 से 51 के आरंभिक महीनों तक उन्होंने पढ़ाई के साथ ही कविताएँ लिखीं और छपवाई। इन दिनों सबसे अधिक वे रेडियो से जुड़े प्रसारण के माध्यम से शिल्पगत रुचि का आरंभ हुआ जो विविध रूपों में अंत तक बना रहा। रेडियो पर कविताओं के अलावा बच्चों के लिए दर्जनों कहानियों का भी प्रसारण किया। इसी दौरान हीरानंद शास्त्री के पुरातत्त्व संबंधी अंग्रेज़ी व्याख्यानों के हिंदी अनुवाद में भी रत रहे। लखनऊ से ही निकलने वाले 'नवजीवन' दैनिक से पत्रकारिता की शुरुआत की।
1949 में दूसरा सप्तक' के लिए अज्ञेय ने उनसे कविताएँ लीं जो 1951 में प्रकाशित हुई। इस मध्य दिसंबर 1949 से मार्च 1950 तक लखनऊ से निकलने वाले दैनिक 'नवजीवन' में उप-संपादक रहे। 1950 में लखनऊ के दैनिक 'नवजीवन' से पत्रकारिता शुरु की 'अमृत' पत्रिका के संपादक ने सहाय जी की क्षमताओं से प्रभावित होकर उन्हें संपादकीय लिखने कापहला अवसर दिया जो 13 मई, 1950 को छपा। लखनऊ लेखक संघ और नाट्य संघ के गठन में कृष्णनारायण कक्कड़ तथा नरेश मेहता के साथ शामिल हुए। यशपाल के नाटक 'नशे-नशे की बात' में यशपाल, कक्कड़ आदि के साथ अभिनय किया। अज्ञेय जी ने उन्हें मई 1951 में प्रतीक' का सहायक संपादक बनाकर दिल्ली बुला लिया।
मई 1953 से मार्च 1957 तक आकाशवाणी के समाचार विभाग में उप-संपादक के पद पर रहे। वहाँ से त्यागपत्र देने के बाद पुनः मुक्त लेखन किया। साथ ही लखनऊ से निकलने वाली पत्रिका 'युगचेतना' के दिल्ली प्रतिनिधि रहे। इसके जुन-जुलाई के अंक में 'हमारी हिंदी' कविता छपी जिसे लेकर सरकारी हिंदी सलाहकारों में बावेला मच गया। 'सरस्वती' के संपादक ने कवि और कविता के विरुद्ध लेख लिखा। “कविता में हिंदी अगर दुहाजू की बीवी है तो यह दुहाजू कौन है?" विरोधियों के द्वारा यह प्रश्न पूछा जाने लगा। इस पूरे प्रकरण पर यशपाल ने कविता का समर्थन किया।
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सम्मान एवं पुरस्कार
उनके द्वारा अनुवादित तीन हंगरी नाटक भी प्रदर्शित हुए। रघुवीर सहाय को 1984 में "लोग भूल गए हैं" पर 'साहित्यक अकादमी पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।
काव्यगत विशेषताएँ
पहले बताया जा चुका है कि रघुवीर सहाय आजीवन पत्रकारिता से जुड़े रहे। इसलिए उनकी काव्य रचनाओं में राजनीतिक चेतना के अतिरिक्त आधुनिक युग की विभिन्न समस्याओं पर समुचित प्रकाश डाला गया है। उनकी काव्यगत विशेषताएँ इस प्रकार हैं
(i) राजनीतिक चेतना
पत्रकारिता से जुड़े रहने के कारण रघुवीर सहाय की कविताओं में राजनीतिक चेतना सहज रूप में व्यक्त हुई है। कवि ने राजनीति की क्रूरताओं तथा गतिविधियों का सहज वर्णन किया है। कवि स्वीकार करता है कि राजनीति ने देश को अवसरवादिता, जातिवाद, हिंसा तथा भ्रष्टाचार जैसी बुराइयाँ प्रदान की हैं। इस संदर्भ में कवि के काव्य में मंत्री मुसद्दी लाल लोकतंत्र के भ्रष्टाचार का प्रतीक है। इसलिए डॉक्टर बच्चन सिंह ने रघुवीर सहाय को पोलिटिकल कवि कहा है। देश की दयनीय दशा देखकर कवि बड़े-से-बड़े राजनेता का नाम लेने में संकोच नहीं करता।
(ii) सामाजिक चेतना
पत्रकार तथा संपादक होने के कारण रघुवीर सहाय के काव्य में सामाजिक चेतना भी देखी जा सकती है। कहीं-कहीं कवि जनसाधारण का पक्षधर दिखाई देता है। कवि ने अपनी अधिकांश कविताओं में सामाजिक विरोधों तथा अंतर्विरोधों एवं विसंगतियों का उद्घाटन किया है। कवि मध्यवर्गीय जीवन के दबाव और लोकतांत्रिक जीवन की विडंबना का यथार्थ वर्णन करता है। यही नहीं, वह आम आदमी के साथ खड़ा दिखाई देता है। इसलिए वह कहता है-
(iii) मानवीय संबंधों का वर्णन
कवि ने अपनी कुछ कविताओं में मानवीय संबंधों का वर्णन करते हुए मानवीय व्यथा के विविध आयामों पर प्रकाश डाला है। कवि ने स्त्री जीवन की पीड़ा को अधिक मुखरित किया है। 'बैंक में लड़कियाँ' शीर्षक कविता में कवि स्त्री तथा पुरुष के मनोविज्ञान पर प्रकाश डालता है। इसी प्रकार 'चेहरा' कविता में गरीब लड़की का जो वर्णन किया है, वह बड़ा ही सजीव बन पड़ा है। 'कैमरे में बंद अपाहिज' कविता में कवि ने एक अपाहिज की पीड़ा के प्रति संवेदना व्यक्त की है।
(iv) आक्रोश और व्यंग्य का उद्घाटन
रघुवीर सहाय सामाजिक तथा राजनीतिक क्षेत्रों में व्याप्त विसंगतियों के प्रति अपने आक्रोश को व्यक्त करते हुए दिखाई देते हैं। कहीं-कहीं उनके व्यंग्य की धार बड़ी तीखी तथा चुभने वाली लगती है। आज की अवसरवादिता, समझौतापरस्ती, जातिवाद, मध्यवर्गीय आडंबर को देखकर कवि की वाणी में आक्रोश भर जाता है। कवि लोकतंत्र पर भी व्यंग्य करने से नहीं चूकता। इस संदर्भ में 'रामदास' नामक कविता विशेष महत्त्व रखती है जो कि समाज के ताकतवरों की बढ़ती हुई हैसियत का एहसास कराती है। लोकतंत्र पर व्यंग्य करता हुआ कवि कहता है-
प्रमुख रचनाएं
काव्य संग्रह
- सीढ़ियों पर धूप में 1960
- आत्महत्या के विरुद्ध 1967
- हंसो हंसो जल्दी हंसो 1975
- लोग भूल गए हैं 1982
- कुछ पत्ते कुछ चिट्टियां 1989
- प्रतिनिधि कविताएं 1994
- एक समय था
कहानी संग्रह
- कैमरे में बंद अपाहिज
- रास्ता इधर से है
- जो आदमी हम बना रहे हैं
- दुनिया
- लोकतंत्र का संकट
- समझौता
- मौका
- पानी के संस्मरण
- पानी
- लंबी सड़कें
- अरे, अब ऐसी कविता लिखो
- राष्ट्रगीत
- अखबार वाला
- बसंत
- सारस्वत
- युगचेतना
- तस्वीर
- चांद की आदतें
- खोज खबर
- लाखों का दर्द
- गुलामी
- बदलो
- चेहरा
- मेरा जीवन
- गरीबी
- रामदास
- हमारी हिंदी
- बड़ा सफर
- अकेला
- मेरे अनुभव
- स्वाधीन व्यक्ति
- आने वाला खतरा
- इतने शब्द कहां है
- कमरा
- याचना
- पढ़िए गीता
निबंध संग्रह
- दिल्ली मेरा परदेस
- लिखने का कारण
- ऊबे हुए सुखी
- वे और नहीं होंगे जो मारे जाएँगे
- भँवर
- लहरें और तरंग
- यथार्थ का अर्थ
बाल कविताएं
- चल परियों के देश
- फायदा
अनुवाद
- शेक्सपियर के नाटक 'मैकबेथ' का अनुवाद
- तीन हंगारी नाटक
भाषा-शैली
अखबारों से जुड़े रहने के कारण रघुवीर सहाय की कविता में सहज, सरल तथा बोलचाल की भाषा का प्रयोग देखा जा सकता है। उनकी भाषा की अपनी शैली है। उसमें कहीं पर भी विद्वत्ता का मुलम्मा नहीं चढ़ा। परंतु इनकी बोलचाल की भाषा परिनिष्ठि उगत हिंदी भाषा से जुड़ी हुई है। कुछ स्थलों पर कवि संस्कृतनिष्ठ शब्दों के साथ-साथ उर्दू के शब्दों का मिश्रण करते हुए चलते हैं। उदाहरण देखिए
कवि की आरंभिक कविताओं में प्रकृति के बिंब देखे जा सकते हैं, परंतु परवर्ती कविताओं में वे जनसाधारण के जीवन के चित्र उकेरते हैं। उनकी कविताओं में नेहरू, वाजपेयी, मोरारजी देसाई के नाम प्रतीक रूप में प्रयुक्त हुए हैं। आरंभ में उन्होंने छंद का निर्वाह करते हुए कविताएँ लिखीं। परंतु आगे चलकर वे छंद मुक्त कविता करने लगे।
संक्षेप में हम कह सकते हैं, कि भाव और भाषा दोनों दृष्टियों से रघुवीर सहाय का काव्य नई कविता से लेकर समकालीन कविता की प्रवृत्तियाँ लिए हुए हैं। उनकी कविताएँ प्रेम, प्रकृति, परिवार, समाज तथा राजनीति का यथार्थ वर्णन करने में सक्षम रही हैं।
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