![]() |
डॉ धर्मवीर भारती |
जन्म: 25 दिसंबर, 1926 इलाहाबाद
निधन: 4 सितंबर, 1997
शिक्षा: एम.ए (हिंदी) पी.एच.डी
माता: चंदा देवी
पिता: चिरंजीव लाल वर्मा
व्यवसाय: लेखक, कवि, नाटककार, उपन्यासकार
पुरस्कार: पद्मश्री
अवधी/काल: आधुनिक हिंदी साहित्य
नागरिकता: भारतीय
धार्मिक मान्यता: हिंदू
जीवन परिचय
डॉ. धर्मवीर भारती का जन्म 25 दिसंबर, 1926 को इलाहाबाद के अतरसुईया मोहल्ले में हुआ। आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रमुख कवियों में से एक हैं, इनका हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उनके पिता का नाम चरंजीवी लाल तथा माता का नाम चंदी देवी था। बचपन में ही उनके पिता का असामयिक निधन हो गया। फलस्वरूप बालक धर्मवीर को अनेक कष्ट झेलने पड़े। सन् 1942 में उन्होंने कायस्थ पाठशाला के इंटर कॉलेज से इंटर की परीक्षा पास की। इसके बाद उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया, जिसके कारण उनकी पढ़ाई एक वर्ष के लिए रुक गई। सन् 1945 में उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से बी०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। सर्वाधिक अंक प्राप्त करने के कारण इन्हें 'चिंतामणि घोष मंडल' पदक मिला।
सन् 1947 में उन्होंने हिंदी में एम०ए० की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। 1954 में उन्होंने 'सिद्ध साहित्य' पर पी०एच०डी० की उपाधि प्राप्त की और प्रयाग विश्वविद्यालय में ही प्राध्यापक नियुक्त हुए, परंतु शीघ्र ही वे "धर्मयुग" के संपादक बन गए। सन् 1961 में उन्होंने “कॉमन वेल्थ रिलेशंस कमेटी” के निमंत्रण पर इंग्लैंड की यात्रा की। उन्हें पश्चिमी जर्मनी जाने का भी मौका मिला। सन् 1966 में भारतीय दूतावास के अतिथि बनकर इंडोनेशिया व थाईलैंड की यात्रा की। आगे चलकर उन्होंने भारत-पाक युद्ध के काल में बंगला देश की गुप्त यात्रा की और 'धर्मयुग' में युद्ध के रोमांच का वर्णन किया। साहित्यिक सेवाओं के कारण सन् 1972 में भारत सरकार ने उन्हें 'पद्मश्री' से सम्मानित किया। 5 सितंबर, 1997 मुंबई में उनका निधन हो गया।
प्रारंभिक जीवन
डॉ धरमवीर भारती का जन्म 25 दिसंबर, 1926 को इलाहाबद (उत्तरप्रदेश) में हुआ था। धर्मवीर भारती जी का प्रारंभिक जीवन कष्टमय व्यतीत हुआ। उनकी माता का नाम चंदी देेेवी और पिता का नाम चरंजीवी लाल था। वे शाहजहांपुर के निकट खुदागंज कस्बे के पुराने जमींदार परिवार के पाँच भाइयों में से एक थे। उन्होंने पुश्तैनी रहन सहन छोड़कर-रुड़की से शिक्षा प्राप्त की। फिर उत्तर प्रदेश में लौटकर पहले मिर्ज़ापुर और फिर स्थायी रूप से इलाहाबाद में बस गये। बालक धर्मवीर बचपन में एक दो वर्ष पिता के साथ आज़मगढ़ और मऊनाथ भंजन में रहे।
प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। इलाहाबाद के डी.ए.वी. हाई स्कूल में पहली बार चौथी क्लास में नाम लिखाया गया। जब वे आठवीं कक्षा में थे, तभी पिता का देहांत हो गया। उसके बाद बहुत दारुण ग़रीबी में दिन बीते। प्रयाग में बसे मामा श्री अभयकृष्ण जौहरी के परिवार के साथ रहकर उच्च शिक्षा प्राप्त की। कायस्थ पाठशाला इंटर कालेज से सन् 1942 में इंटरमीडिएट पास किया। बयालीस के आंदोलन में भाग लिया और पढ़ाई एक बरस रुक गयी। सन् 1945 में प्रयाग विश्वविद्यालय से बी. ए. की डिग्री प्राप्त की, और वे हिंदी में सर्वाधिक अंक प्राप्त करने के लिए उन्हें 'चिंतामणि घोष पुरस्कार' से नवाजा गया। 1946 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी भाषा में प्रथम श्रेणी से एम.ए करने के पश्चात, सन् 1954 में डॉ. धीरेन्द्र वर्मा के निर्देशन में "सिद्ध साहित्य" पर पी.एच.डी की डिग्री प्राप्त की।
शिक्षा
डॉ धरमवीर भारती बचपन से ही जिज्ञासु और धार्मिक प्रवृत्ति के प्रतीत होते थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई, और बाद में इलाहाबाद के डी.ए.वी.हाई स्कूल में पहली बार चौथी क्लास में नाम लिखाया गया। जब वे आठवीं कक्षा में थे, तभी पिता का देहांत हो गया। उनके पिता का देहांत होने के बाद घर का सारा बोझ उनके ऊपर आ गया, जिसके कारण उन्हें दारुण ग़रीबी में दिन बीतने पड़़े, अनेक कष्ट झेलने पड़़े। इन्हें बचपन से ही पुस्तकें पढ़नेेेे का शौक था, वे पाठ्य पुस्तकोंं के आलावा कविता पुस्तकें तथा अंग्रेज़ी उपन्यास पढ़ने का बेहद शौकीन थे। स्कूल ख़त्म होते ही घर में बस्ता पटक कर पुस्तकालय में भाग जाते और वहाँ देर शाम तक किताबें पढ़ते रहते।
1942 में उन्होंने कायस्थ पाठशाला के इंटर कॉलेज से इंटर की परीक्षा पास की। उन्होंने 1946 में उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी में प्रथम श्रेणी पर रहते हुए एम ए की शिक्षा प्राप्त की, और हिंदी में सर्वोच्च अंक हासिल करने के लिए उन्हें "चिंतामणि घोष पुरस्कार" से नवाजा गया। सन् 1954 में डॉ. धर्मवीर भारती वर्मा 'सिद्ध साहित्य' विषय पर पी.एच.डी पूरी की और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हिंदी में व्याख्याता नियुक्त किए गए।
साहित्यिक विशेषताएँ-
धर्मवीर भारती स्वतंत्रता के बाद के साहित्यकारों में विशेष स्थान रखते हैं। उन्होंने हर उम्र और हर वर्ग के पाठकों के लिए अलग-अलग रचनाएँ लिखी हैं। उनके साहित्य में व्यक्ति स्वातंत्र्य, मानवीय संकट तथा रोमानी चेतना आदि प्रवृत्तियाँ देखी जा सकती हैं, परंतु वे सामाजिकता और उत्तरदायित्व को अधिक महत्त्व देते हैं। इनके आरंभिक काव्य में हमें रोमानी भाव-बोध देखने को मिलता है। “गुनाहों का देवता" इनका सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यास है। इसमें एक सरस और भावप्रवण प्रेम कथा है। 'सूरज का सातवाँ घोड़ा' भी भारती जी का एक लोकप्रिय उपन्यास है, जिस पर एक हिंदी फिल्म भी बन चुकी है। 'अंधा युग' में कवि ने आज़ादी के बाद गिरते हुए जीवन मूल्यों, अनास्था, मोहभंग, विश्वयुद्धों से उत्पन्न भय आदि का वर्णन किया है।
इन्हें भी पढ़ें:- रघुवीर सहाय
'काले मेघा पानी दे' भारती जी का एक प्रसिद्ध संस्मरण है जिसमें उन्होंने लोक प्रचलित विश्वास तथा विज्ञान के द्वंद्व का चित्रण किया है। प्रस्तुत संस्मरण किशोर जीवन से संबंधित है। इसमें दिखाया गया है कि किस प्रकार गाँवों के बच्चों की इंदर सेना अनावृष्टि को दूर करने के लिए द्वार-द्वार पर पानी माँगती चलती है।
सम्मान एवं पुरस्कार
- 1972 में पद्मश्री से नवाजा गया।
- 1984 हल्दी घाटी सर्वश्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार
- 1985 साहित्य अकादमी रत्न सदस्यता सम्मान
- 1988 सर्वश्रेष्ठ नाटककार पुरस्कार
- 1989 संगीत नाटक अकादमी
- 1989 डॉ राजेंद्र प्रसाद शिखर सम्मान
- 1989 भारत भारती सम्मान
- 1994 महाराष्ट्र गौरव
- 1994 कौड़िय न्यास
- 1994 व्यास सम्मान
प्रमुख रचनाएं
- मुर्दों का गाँव,
- स्वर्ग और पृथ्वी
- चाँद और टूटे हुए लोग
- बंद गली का आखिरी मकान
- साँस की कलम से
- समस्त कहानियाँ एक साथ
- दूसरा सप्तक की कविताएं
- ठंडा लोहा
- सात गीत वर्ष
- कनुप्रिया
- सपना अभी भी
- आद्यन्त
- गुनाहों का देवता
- सूरज का सातवां घोड़ा
- ग्यारह सपनों का देश
- प्रारंभ व समापन
- ठेले पर हिमालय
- कहानी-अनकहनी
- पश्यंती
- मानव मूल्य और साहित्य
- नदी प्यासी थी
- नील झील आदि
- अंधा युग
- प्रगतिवाद
- एक समीक्षा
- मानव मूल्य और साहित्य
कार्यक्षेत्र
1948 में ‘संगम’ सम्पादक श्री इलाचंद्र जोशी में सहकारी संपादक नियुक्त हुए। धर्मवीर भारती ने दो वर्ष वहाँ पर काम करने के बाद हिन्दुस्तानी अकादमी में अध्यापक नियुक्त हुए। 1954 में उन्होंने अपनी पी.एच.डी डिग्री हासिल की और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हिंदी के अध्यापक के रूप में नियुक्त हुए। वहाँ पर उन्होंने 1960 तक कार्य किया। प्रयाग विश्वविद्यालय में अध्यापन के दौरान 'हिंदी साहित्य कोश' के सम्पादन में सहयोग दिया। निकष' पत्रिका निकाली तथा ‘आलोचना' का सम्पादन भी किया। उसके बाद 'धर्मयुग' में प्रधान सम्पादक पद पर काम किया, यही पर रहते हुए उन्होंने एक रिपोर्टर के रूप में भारत पाकिस्तान के युद्ध को कवर किया। 1997 में डॉ॰ भारती ने अवकाश ग्रहण किया। 1999 में युवा कहानीकार उदय प्रकाश के निर्देशन में साहित्य अकादमी दिल्ली के लिए डॉ० भारती पर एक वृत्त चित्र का निर्माण भी हुआ है।
भाषा-शैली
धर्मवीर भारती जी आरंभ से ही सरल भाषा के पक्षपाती रहे हैं। उन्होंने प्रायः जन सामान्य की बोल-चाल की भाषा का ही प्रयोग किया है जिसमें तत्सम, देशज तथा विदेशी शब्दावली का उपयुक्त प्रयोग किया है। अपनी रचनाओं में वे उर्दू, फारसी तथा अंग्रेज़ी शब्दों के साथ-साथ तद्भव शब्दों का भी खुलकर मिश्रण करते हैं। विशेषकर, निबंधों में उनकी भाषा पूर्णतया साहित्यिक हिंदी भाषा कही जा सकती है। 'काले मेघा पानी दे' वस्तुतः भारती जी का एक उल्लेखनीय संस्मरण है जिसमें सहजता के साथ-साथ आत्मीयता भी है। बड़ी-से-बड़ी बात को वे वार्त्तालाप शैली में कहते हैं और पाठकों के हृदय को छू लेते हैं। अपने निबन्ध तथा रिपोर्ताज में उन्होंने सामान्य हिंदी भाषा का प्रयोग किया है। एक उदाहरण देखिए-
“मैं असल में था तो इन्हीं मेढक-मंडली वालों की उमर का, पर कुछ तो बचपन के आर्यसमाजी संस्कार थे और एक कुमार-सुधार सभा कायम हुई थी उसका उपमंत्री बना दिया गया था-सो समाज-सुधार का जोश कुछ ज्यादा ही था। अंधविश्वासों के खिलाफ तो तरकस में तीर रखकर घूमता रहता था।"
0 टिप्पणियाँ